कविता-पहला कागज़

 

वो पहला कागज़ मुझे आज तक नही मिला

जिस पर मैंने सबसे पहले कुछ लिखा था

ना वो उम्र मिली, जिस उम्र में लिखा था

ना वो हाथ मिले, जिन हाथों से लिखा था

अभी तक वो भाव, वो मनोदशा भी नही मिली

जिनमे वह लिखा गया होगा

 

शायद वह कागज़ था ही नही

वह स्लेट या तख्ती हो सकती है

जिस पर मैंने अपना पहला अक्षर लिखा होगा

अपने लड़खड़ाते हाथो से बनाई होगी

कोई चित्रात्मक भाषा

और बाद में हमारे देश की शिक्षा व्यवस्था ने

अपनी समझदारी के डस्टर से,

उस निष्कपटता को हमेशा के लिए मिटा दिया होगा।