भय में है पत्रकार

उत्तर प्रदेश में मुख्यमंत्री की कुर्सी संभालने के बाद जहां उत्तर प्रदेश के सीएम श्री योगी आदित्यनाथ गुंडे माफियाओं व लुटेरों में भय व्याप्त करने में कामयाब हुए हैं वहीं जिला स्तरीय अधिकारियों की गलती अथवा लापरवाही से मीडिया कर्मियों में भी फर्जी मुकदमे दर्ज करके हमारी पुलिस डर बैठाने में कामयाब हो गई है, जिसे लोकतंत्र की मजबूती के लिए दूर करने की आवश्यकता है। मैं दावे के साथ कह सकता हूं कि पत्रकारों के विरूद्ध मुकदमे दर्ज करने वाले अधिकारी भले ही झूठे मुकदमे लिखकर खुद की पीठ थपथपा रहे हो, लेकिन सरकार का भी कितना बड़ा नुकसान कर रहे हैं इसका आंकलन करना शायद उनके बस की बात नहीं है।



मैं मानता हूं कि लोकतंत्र को चलाने वाले 4 खंभों में बढ़ती आबादी के हिसाब से सदस्यों की संख्या में लगातार इजाफा हो रहा है।  मुझे नहीं लगता कि चाहे कार्यपालिका हो या व्यवस्थापिका न्यायपालिका हो या पत्रकारिता सभी में अच्छे बुरे सदस्यों की संख्या ना रहती हों लेकिन रिपोर्ट लिखने के लिए पीड़ित को कई दिन तक टरकाने  वाली पुलिस द्वारा पत्रकारों के विरूद्ध  संगीन धाराओं का मुकदमा लिख देना, लाठी लेकर सरकार चलाने के समान है जिसके लिए लोकतंत्र में कोई जगह नहीं होनी चाहिए। वैसे तो शासन हो या प्रशासन दोनों के पास सबसे बड़ी ताकत होती है जिले के एसपी के पास जहां दो चार हजार पुलिसकर्मी रहते हैं वही सरकार के पास प्रदेश के समस्त जिलों की पुलिस रहती है यदि प्रशासन के अधिकारी चाहे तो किसी के भी विरुद्ध मुकदमा दर्ज करके जेल भेज सकते हैं लेकिन संविधान पद के दुरुपयोग की इजाजत नहीं देता।

वर्तमान में प्रदेश के कई जिलों में पत्रकारों के विरूद्ध दर्ज मुकदमे  इस बात का जीता जागता प्रमाण है कि अब मुख्यमंत्री व मंत्री ना सही अधिकारियों ने जरूर लाठी लेकर जिला चलाना शुरु कर दिया है। तभी तो हमेशा पुलिस के द्वारा किसी अपराधी को पकड़ने के लिए बनाया प्रेस नोट छापने वाले पत्रकारों के विरुद्ध मिनटों में मुकदमा दर्ज कर लिया जा रहा है। मैं बड़े आदर व सम्मान के साथ सरकार के सिपहसालारों  से पूछना चाहता हूं कि किसी पत्रकार ने कोई खबर घुमा कर लिख भेजी तो उसे किस तरह फांसी पर चढ़ा दिया जाएगा। क्या पुलिस द्वारा जारी किए गए समस्त खुलासे वास्तविक होते हैं। किसी मुलजिम को घर से उठा कर क्या किसी चौराहे से लूट चोरी की योजना बनाते हुए गिरफ्तार नहीं दिखाया जाता।

क्या समस्त खुलासे वास्तविकता से भरे होते हैं बीते दिनों बिजनौर के थाना कोतवाली में पुलिस ने एक व्यक्ति को चोरी के आरोप में पकड़ा और उसकी पत्नी से पिटाई न करने के बदले पांच हजार लेकर उससे बरामदगी दिखा डाली, मेरे द्वारा खुद फोन किया गया तो दरोगा का कहना था कि और क्या मैं आपसे पैसा लेकर उसपर लगाता। क्या मुझसे यह बात कहने वाला दरोगा किसी धारा का मुलजिम नहीं है।

मैं पूछना चाहता हूं पत्रकारों के विरूद्ध फर्जी मुकदमे लिखने वाली पुलिस से कि मुठभेड़ में पुलिस कर्मियों के पैरों में ही क्यों छर्रे या गोली लगती हैं यह सबसे बड़ा सवाल है। पत्रकार  सोचता है कि पुलिस ने अपराधी को मारा है या गिरफ्तार किया है जो जनता के हित में है। उससे ज्यादा वह नहीं सोचता और आप लोग किस तरह झूठे मुकदमे लिखकर पत्रकारों को जेल भेजने का प्रयास करते हैं। यदि जिलों में उच्च अधिकारी थाना अध्यक्ष की मनगढ़ंत बातों में आकर निर्णय लेना छोड़ दें तो कौन पत्रकार पत्रकारिता के सम्मान पर यथास्थिति या सुधार के लिए काम कर पाएगा। मैं यह नहीं कहता कि समस्त पुलिसकर्मी ऐसा करते होंगे, लेकिन यह दावे के साथ कह सकता हूं कि चाहे मिर्जापुर हो या आजमगढ़ चाहें लखीमपुर हो या बिजनौर, मेरठ,  प्रतापगढ़ अथवा नोएडा में पत्रकारों का इतना बड़ा दोष नहीं है कि उनसे डाकुओं की तरह व्यवहार करके संगीन धाराएं लगा दी जाए।


नोएडा में तो 25,000 का इनाम रख दिया गया तथा कहा गया कि ये मान्यता प्राप्त पत्रकार नहीं थे। मैं पूछना चाहता हूं  मान्यता का सवाल करने वाले अधिकारियों से कि आज के आधुनिक व सोशल एवं डीजिटल मीडिया के बढ़ते युग में जिला तहसील की तों छोड़िए प्रत्येक गांव  पंचायत में भी रिपोर्टर रखनें होंगे, और जब रखे हैं तो वह खबर भी अपने-अपने संस्थानों को भेजेंगे, एक जिले में कितने रिपोर्टर की मान्यता हो सकेगी या सरकार कितनों को मान्यता दे सकेगी । कुल मिलाकर मुझे यह स्वीकार करने में कोई आपत्ति नहीं है कि मीडिया परिवार में काफी लोग पत्रकारिता के मापदंडों का माखौल उड़ा रहे हैं।या पत्रकारिता की छवि धूमिल कर रहे हैं इसके बावजूद पत्रकारों के पुलिस से कई गुना ठीक होने का दावा मैं खुलेआम कर सकता हूं। और हां पत्रकारिता में रस्सी का सांप बनाने का कोई कॉलम ही नहीं होता साहब, चलते-चलते अनुरोध करना चाहता हूं सरकार व उसके अधिकारियों से कि देश व प्रदेश हित में काम कर रही सरकार की छिछालेदार कराने से बचें और मीडिया कर्मियों में तेजी से पनप रहे डर को समय रहते दूर करने का काम करें।जो स्वस्थ लोकतंत्र के लिए जरूरी है। मैं उम्मीद करता हूं कि मुख्यमंत्री मेरे सुझाव पर अवश्य विचार करेंगे या सूचना निदेशक मुख्यमंत्री के समक्ष सुझाव रखेंगे।