मुल्क मे सहिष्णुता ज्यादा है या असहिष्णुता इस सवाल पर मुल्क में एक बार फिर से बहस छिड़ गई है। बहस इसलिए छिड़ी कि श्याम बेनेगल, मणिरत्नम, अदूर गोपाल कृष्णन, अपर्णा सेन, आशीष नंदी, अनुराग कश्यप, कोंकणा सेन, गौतम घोष, केतन मेहता, पार्था चटर्जी, रामचन्द्र गुहा, प्रदीप कक्कड़, तपस चक्रवर्ती और सुमित सरकार समेत अपने-अपने शोबे (क्षेत्र) के 49 नामवर लोगों ने वजीर-ए-आजम नरेन्द्र मोदी के नाम एक खत लिख कर अपील की थी कि मजहब और जात-पात के नाम पर मुल्क में हो रहे लिंचिंग के वाक्यात हर हाल में जल्द से जल्द रोके जाएं। सुप्रीम कोर्ट भी 2018 में इस सिलसिले में वाजेह (स्पष्ट) आर्डर दे चुका है कि लिंचिंग के खिलाफ सख्त कानून बनाया जाए। इन वाक्यात की वजह से पूरी दुनिया में मुल्क की बदनामी हो रही है और इससे मुतास्सिर (पीड़ित) तबके का भरोसा भी सरकार पर से उठता जा रहा है। लिंचिंग के खिलाफ इतना सख्त कानून बनना चाहिए कि ऐसे वाक्यात के मुकदमों का बहुत जल्द और सख्त फैसला हो। अपने खत में इन हस्तियों ने लिखा कि नेशनल क्राइम रिकार्ड ब्योरो (एनसीआरबी) की रिपोर्ट के मुताबिक सिर्फ एक साल 2016 मे ही मुल्क मे दलितों पर हिंसा और जुल्म के आठ सौ चालीस (840) वाक्यात पेश आए हैं। दलितों के अलावा पहली जनवरी 2009 से 29 अक्टूबर 2018 तक मुसलमानों पर हुई हिंसा में 91 लोगों को कत्ल कर दिया गया और 579 लोग जख्मी हुए।
यह खत आने के बाद इसके जवाब में सोनल मानसिंह, अदाकारा कंगना रानौत, सेंसर बोर्ड के चेयरमैन प्रसून जोशी, मधुर भण्डारकर, विवेक अग्निहोत्री, अशोक पंडित और प्रतिभा प्रहलाद, मनोज जोशी, श्याम लाल बसु, रिटायर्ड मेजर जनरल पी के मलिक, विश्वजीत चटर्जी, कंचना मोइत्रा, प्रोफेसर प्रीतम प्रसाद राय, प्रदीप कुमार मंडल, रणदीप सरकार और गौतम दास समेत बासठ (62) जानी-मानी हस्तियों ने जवाबी खत जारी करके इल्जाम लगा दिया कि वजीर-ए-आजम मोदी के नाम उनसे पहले खत लिखने वाले 49 लोगों ने सिर्फ चुनिंदा मामलात का जिक्र करते हुए देश को बदनाम करने, देश को बांटने और असहिष्णुता (अदम रवादारी) फैलाने व मुल्क में बदगुमानी (गलत धारणा) फैलाने की गरज से वजीर-ए-आजम नरेन्द्र मोदी को जो खत लिखा है हम उसकी मजम्मत (निंदा) करते हैं। प्रसून जोशी ही बासठ लोगों की कयादत करते दिखे, हालांकि वह सेंसर बोर्ड के चेयरमैन की हैसियत से सरकारी मुलाजिम हैं कंगना रानौत के अंदर कितनी सहिष्णुता है इसका मजाहिरा वह चंद रोज पहले ही मुल्क के मीडिया पर इंतेहाई गैर मुहज्जब जुबान (अभद्र भाषा) का इस्तेमाल करके कर चुकी हैं।
गुजिश्ता कुछ सालों में मुल्क में एक नया रिवाज चल पड़ा है कि अगर कोई भी शख्स किसी एक लीडर या वजीर के घटिया बयान की मजम्मत कर दे और यह कह दे कि बयान देने वाले में सहिष्णुता की कमी है तो प्रसून जोशी, अशोक पंडित और अनुपम खेर जैसों का 'स्यूडो सहिष्णु गैंग' फौरन मैदान में कूद पड़ता है और यह इल्जाम लगा देता है कि फलां शख्स ने तो पूरे भारत को 'असहिष्णु' देश कहा है। हालांकि यह सच नहीं होता है। मरकजी वजीर गिरिराज सिंह ने एक नहीं कई बार बयान दिया है कि वजीर-ए-आजम नरेन्द्र मोदी और उनकी सरकार की मुखालिफत करने वाले और उन्हें वोट न देने वाले 'राष्ट्र विरोधी' हैं। उन्हें पाकिस्तान चले जाना चाहिए। सिर्फ गिरिराज सिंह ने ही नहीं और भी कई बीजेपी लीडरान ने इसी किस्म के बयान दिए हैं। लेकिन अगर शबाना आजमी ने यह कह दिया कि अब सरकार की कमियों पर उंगली उठाने और सरकार के फैसलों की मुखालिफत कोई करता है तो उसे देशद्रोही करार दे दिया जाता है। शबाना ने कभी यह नहीं कहा कि भारत देश 'असहिष्णु' हो गया है। लेकिन 'स्यूडो सहिष्णु गैंग' ने उनपर ऐसा हमला बोला जैसे वह वाकई देशद्रोही हों।
ईमानदारी से बात की जाए तो भारत देश नहीं असली असहिष्णु तो प्रसून जोशी और कंगना रानौत जैसे लोग हैं जिन्हें यह भी बर्दाश्त नहीं है कि देश का कोई भी शहरी अगर कोई तकलीफ महसूस करे तो वह अपनी तकलीफ के हवाले से अपने ही वजीर-ए-आजम को खत भी न लिखे। वजीर-ए-आजम मोदी ने अभी तक तो यह कहा नहीं है कि वह पूरे एक सौ तीस करोड़ हिन्दुस्तानियों के नहीं बल्कि सिर्फ प्रसून जोशी एण्ड कम्पनी और किसी एक पार्टी के वजीर-ए-आजम हैं। वह बार-बार यही कहते हैं कि वह मुल्क के एक सौ तीस करोड़ लोगों के नुमाइंदे व सेवक हैं। ऐसे में अगर एक सौ तीस करोड़ हिन्दुस्तानियों में कुछ लोग अपनी शिकायत दर्ज कराने के लिए अपने वजीर-ए-आजम को खत लिखते हैं तो प्रसून जोशी जैसे लोग उसकी मुखालिफत करने वाले कौन होते हैं। खुद वजीर-ए-आजम नरेन्द्र मोदी ने तो श्याम बेनेगल वगैरह के खत का बुरा नहीं माना। अगर बुरा मानते तो बोल देते। उन्होने तो कुछ कहा नहीं। प्रसून जोशी वगैरह ने यह जरूर जाहिर कर दिया कि वजीर-ए-आजम नरेन्द्र मोदी पर उन्हीं की इजारादारी (एकाधिकार) है क्योंकि उन्हें फिल्मों में गाने लिखने का मौका मिले न मिले, लंदन तक जाकर पहले से तयशुदा सवालात के जरिए उनका इंटरव्यू करने और सेंसर बोर्ड का चेयरमैन होने के नाते हर किस्म के फायदे मिलते हैं।
क्या सहिष्णुता का पाठ पढाने वाले स्यूडो सहिष्णु गैंग को श्याम बेनेगल वगैरह के खत का वजीर-ए-आजम की जानिब से कोई जवाब आने तक इंतजार नहीं करना चाहिए था। अब यह गैंग कह रहा है कि तब क्यों नहीं बोले जब 1984 में सिखों का कत्लेआम हुआ, कश्मीरी पंडित निकाले गए या मुल्क के किसी कोने में हिन्दुओं के खिलाफ हिंसा के वाक्यात हुए। यह लोग झूट बोल रहे हैं जिन्हें आज यह लोग असहिष्णु बता रहे हैं हकीकत यह है कि उन्हीं लोगों ने कश्मीरी पंडितों, सिखों, हिन्दुओं और मुसलमानों पर होने वाले हिंसा के वाक्यात पर हमेशा आवाज उठाई है। स्यूडो सहिष्णु गैंग खुद भी तो बताए कि उन्होने बाबरी मस्जिद तोड़े जाने और उसी के साथ संविधान की धज्जियां उड़ाए जाने, दिसम्बर 1992 से जनवरी 1993 तक मुंबई में और 2002 में गुजरात में हुए मुसलमानों के कत्लेआम पर कभी आवाज उठाई थी? स्यूडो सहिष्णु गैंग को या तो एहसास नहीं है या जानबूझ कर आंखें बंद किए है कि लिंचिंग का शिकार सिर्फ मुसलमान ही नहीं बन रहे हैं अब तो इस जहर की जद में आदिवासी, दलित और दीगर हिन्दू भी आने लगे हैं। अगर इस जहर को सख्ती से रोका न गया तो भारत में जिसकी लाठी उसकी भैंस जैसे हालात पैदा हो जाएंगे।